Monday, November 2, 2015

Obama-Nawaz Joint Statement: Charade and Reality

Oct 30, 2015/ South Asia Monitor

Pakistan’s terror infrastructure can not be dismantled in half or one fourth or two-third as it derives its life blood from a radicalized society having a craving for all around religious war and an unitary radicalization infrastructure that provide terror recruits to carry out war by terrorism against both India and Afghanistan. Read full analysis of Obama-Nawaz Joint Statement here

 

असंतोष से उबलता पाकिस्तान

Oct 15, 2015/ Dainik Jagran

अमेरिका की पाकिस्तान एवं चीन की नौसैनिक नाकेबंदी करने की क्षमता को प्रभावित करेगा। गुलाम कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान में असंतोष भरे आंदोलन अस्सी के दशक से ही होते रहे हैं, लेकिन एक वीडियो सामने आने में तीन दशक लग गए। बलूचिस्तान में प्राकृतिक गैस एवं खनिजों के बड़े भंडार हैं। इस संपदा को पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी और पंजाबी राजनेता मिलकर लूट रहे हैं, जबकि बलूच जनता मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित है। करीब 19000 बलूच लापता हैं। बलूच नेताओं के अनुसार पाक सुरक्षा बलों ने इन लोगों की हत्या कर दी है। बलूचिस्तान में गुमनाम सामूहिक कब्रों के मिलने का सिलसिला आम हो चुका है। इसी जुलाई में ईद के दिन पाक फौज ने अरवान जिले में तीन गांवों पर बमबारी कर महिलाओं और बच्चों सहित 200 से अधिक बलूचों को मार डाला। सिंध में तो 1972 से ही बांग्लादेश की तरह स्वतंत्र सिंधुदेश की मांग उठ रही है। 2012 से इस आंदोलन ने और जोर पकड़ा है।

मार्च 2012 में कराची में लाखों लोगों ने मुस्लिम लीग द्वारा 1940 के लाहौर अधिवेशन में पारित पाकिस्तान प्रस्ताव की 65वीं वर्षगांठ पर पाकिस्तान के विचार को नकारते हुए स्वतंत्र सिंधुदेश की मांग के समर्थन में जुलूस निकाला था। इसके कुछ ही दिन बाद सिंधुदेश आंदोलन के प्रमुख नेता बशीर अहमद कुरैशी की जहर देकर हत्या कर दी गई। सिंधी राष्ट्रवादी पाकिस्तान के सत्ता संस्थानों में पंजाबी वर्चस्व का विरोध करते रहे हैं और आइएसआइ समर्थित आतंकी संगठनों एवं मदरसों की सिंध में बढ़ती गतिविधियों को इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान के लिए बड़ा खतरा मानते हैं।

पिछले महीने जब प्रधानमंत्री नवाज शरीफ संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित कर रहे थे तो बाहर बड़ी संख्या में मुहाजिर आजादी-आजादी के नारे लगा रहे थे। उनके अनुसार पाकिस्तान में 1947 से अब तक 13 लाख मुहाजिर मुसलमान हिंसा की भेंट चढ़ चुके हैं। मुहाजिरों के सबसे बड़े नेता अल्ताफ हुसैन ने मुहाजिरों की ओर से भावनात्मक अपील जारी करते हुए कहा था कि अगर भारत एक स्वाभिमानी देश है तो वह मुहाजिरों का नरसंहार जारी नहीं रहने देगा। मुहाजिर वे मुसलमान हैं जो 1947 में मौजूदा भारत के हिस्सों से पाकिस्तान गए थे। अल्ताफ हुसैन की अपील स्पष्ट करती है कि इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान के निर्माण का विचार कितना खोखला साबित हुआ। बड़े परिप्रेक्ष्य में देखें तो जिहादी मानसिकता वाला पाकिस्तानी राज्य तंत्र अपने देश के तकरीबन सभी हिस्सों और अपने दो प्रमुख पड़ोसी देशों भारत एवं अफगानिस्तान के साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष युद्ध की स्थिति में है। ऐसे में कहना कठिन है कि भविष्य में इसका क्या स्वरूप होगा, परंतु इतिहास कुछ सबक तो देता है। अस्सी के दशक में बर्लिन की दीवार को स्थायी समझा जाने लगा था, लेकिन पूर्वी जर्मनी की जनता द्वारा ही उसे ध्वस्त किया गया। आज का पाकिस्तान पूर्वी जर्मनी से कहीं अधिक अस्थिर जान पड़ता है। प्रधानमंत्री गुजराल के समय से शुरू की गई पाकिस्तान के अलगाववादी आंदोलनों से दूर रहने की नीति ने पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध आतंकवाद जारी रखने का मौका दिया है। अगर भारत पाकिस्तान में पनप रहे असंतोष और वहां के अलगाववादी आंदोलनों को नजरअंदाज करता है तो भविष्य मे अपने लिए बड़े खतरे को जन्म लेने देने का जोखिम लेगा। अतीत में भारत से ऐसी भूल तब हो चुकी है जब 1947 में पख्तून नेता खान अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व वाले खुदाई खिदमतगार आंदोलन को सहायता नहीं दी गई और धीरे-धीरे आइएसआइ समर्थित जिहादी संगठनों ने इस कबीलाई क्षेत्र के नौजवानों को कट्टरपंथ की राह पर धकेल दिया। नतीजतन सीमांत गांधी कहे जाने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान का यह क्षेत्र आज तालिबान, अलकायदा और लश्कर जैसे आतंकी संगठनों का गढ़ बन चुका है। आज जमात-उद-दावा जैसे संगठन सिंध और बलूचिस्तान के युवाओं को भी आतंकवाद की राह पर ले जा रहे हैं। अगर ये संगठन सफल हुए तो भारत और पूरे विश्व के लिए आतंकी खतरा कई गुना बढ़ जाएगा।

1947 में भारत ने तो पाकिस्तान के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया, लेकिन आज खुद उसके घटक ही पाकिस्तान के मूल विचार को नकार रहे हैं। पाकिस्तान में उभरता असंतोष स्वत:स्फूर्त है। ऐसे में भारत को वहां की घटनाओं के प्रति न केवल सजग रहना चाहिए, बल्कि उन्हें सही दिशा एवं गति देने का कौशल विकसित करना चाहिए। यह आवश्यक है कि भारत गुलाम कश्मीर, गिलगित-बाल्टिस्तान, सिंध और बलूचिस्तान में पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे अत्याचारों की ओर विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित करे। बलूच जनता को विश्व से उतनी ही सहानुभूति की जरूरत है जितनी इस्लामिक स्टेट से पीडि़त यजीदी समुदाय को मिल रही है।

[लेखक दिव्य कुमार सोती, सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं]

Nepal: Why India should ensure a Stable Madhes

Oct 16, 2015/ South Asia Monitor

Strategic importance of Madhes for India as well as Nepal analysed from historical, geographical and cultural perspective. And why Nepal Hill Elite developing liaisons with China leaves Madhes as last buffer for India. Read full article here

China's Military Cut: Xi's Attempts at Control

Oct 7, 2015/ South Asia Monitor/ Indian Defense Review

China's latest Military Cut is driven by History, Geo-Strategy and Communist Party's Power Politics --
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