Monday, June 22, 2015

Myanmar Operation: Why Pakistan is so rattled

South Asia Monitor and Indian Defence Review (19/20 June, 2015)

Read why Pakistan's much sported small nuclear weapons can't deter India from a Special Forces action in POK, how India's current Nuclear Doctrine will play out if Pak tries using small nukes. And Pak Generals know that. A Myanmar kind of Operation inside POK, even a small one, can cost Pak Army its domestic clout and Much More

भूल सुधारने का अवसर

Dainik Jagran and Nai Dunia (May 21, 2015)

हाल की कुछ घटनाओं ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के आक्रामक और भारत के रक्षात्मक रवैये को एक बार फिर सतह पर ला दिया। भारत दौरे पर आए गिलगित-बालतिस्तान से संबंध रखने वाले शोधकर्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता सेंगे सेरिंग ने भारतीय मीडिया को वहां पाक फौज द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार हनन से परिचित कराया। उन्होंने बताया कि 1947 के भारत-पाक युद्ध में पाक द्वारा कब्जा लिए गए गिलगित-बालतिस्तान की जनता भारत के साथ आना चाहती है और भारत की ओर इस आशा भरी दृष्टि से देख रही है कि वह नियंत्रण रेखा को स्थायी अंतरराष्ट्रीय सीमा में परिवर्तित करने के विचार को स्वीकार नहीं करेगा। आश्चर्य की बात यह है कि यह सब हमें भारत सरकार से नहीं, बल्कि सेरिंग से पता चल रहा है। भारत सरकार ने कभी पीओके तथा गिलगित-बालतिस्तान में पाक सेना द्वारा किए गए नरसंहारों की ओर देश की जनता और विश्व समुदाय का ध्यान खींचने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। यह लापरवाह और लचर नीति 1947 में पाक फौज और भाड़े के कबीलाई लड़ाकों द्वारा जम्मू-कश्मीर पर किए गए हमले के समय से ही जारी है। उदाहरण के लिए 1947 में पाक फौज ने भीमबेर में पांच हजार हिंदू और सिख नागरिकों की हत्या कर डाली थी। इसी प्रकार उस समय वर्तमान पीओके के मीरपुर में मौजूद 25,000 हिंदू और सिख नागरिकों में से मात्र दो हजार ही जीवित भारत पहुंच पाए थे। यही घटनाक्रम गिलगित तथा बालतिस्तान की राजधानी स्कार्दू में भी दोहराया गया था। इस सबके बावजूद तत्कालीन नेहरू सरकार, जो कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले गई थी, पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर में किए गए सांप्रदायिक जनसंहार को पुरजोर तरीके से उठाने में विफल रही, जिसके फलस्वरूप पाकिस्तान इतने बड़े जनसंहार की जवाबदेही से साफ बच निकलने में सफल रहा।

गिलगित-बालतिस्तान में पाक फौज के खूनी खेल की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। गिलगित एक शिया बाहुल्य क्षेत्र रहा है जो महाराज हरि सिंह द्वारा भारत में विलय की गई जम्मू-कश्मीर रियासत का भाग था। 1947 में इस क्षेत्र से अल्पसंख्यक हिंदुओं का सफाया कर चुकी पाक फौज 1988 आते-आते शिया जनता से सीधे टकराव में आ चुकी थी। पाकिस्तान के पंजाबी सुन्नी शासकों द्वारा किए जा रहे भेदभाव और मूल नागरिक अधिकारों के अभाव से परेशान शिया जनता ने जब बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए तो पाकिस्तान के तत्कालीन सैनिक शासक जिया उल हक ने सैनिक कार्रवाई के आदेश जारी कर दिए। ब्रिगेडियर परवेज मुशर्रफ के नेतृत्व में पाक फौज के विशेष दस्तों और भाड़े के कबीलाई लड़ाकों ने गिलगित में शियाओं का भीषण नरसंहार किया। ये नरसंहार उस जम्मू-कश्मीर की धरती पर होते रहे हैं जो महाराजा हरि सिंह द्वारा लिखित विलय पत्र के फलस्वरूप भारत का विधिक भाग है तथा जिसे भारत की संसद सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव में भारत का अभिन्न अंग घोषित कर चुकी है। इस सबके बावजूद हम पाक फौज द्वारा हमारी धरती पर चलाए जा रहे इस दमन चक्र को न तो राष्ट्रीय अथवा अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय बना पाए हैं और न ही हमने इस मुद्दे को भारत-पाक वार्ता के केंद्र में लाने का प्रयास किया है।

जहां भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के कारण भारत के अन्य प्रदेशों के निवासी जम्मू-कश्मीर में अचल संपत्ति नहीं खरीद सकते, गिलगित-बालतिस्तान से इस प्रकार की व्यवस्था जुल्फिकार अली भुट्टो के शासनकाल में ही समाप्त कर दी गई थी। 1988 के बाद से पाक फौज गिलगित-बालतिस्तान का जनसांख्यिकीय स्वरूप बदलने के लिए पंजाबियों और पश्तून कबीलाइयों को बड़े पैमाने पर वहां बसा रही है जिसका स्थानीय लोग विरोध करते रहे हैं, परंतु नई दिल्ली इस सब पर सदा से मौन रही है। इस कूटनीतिक चूक से उत्पन्न दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हाल ही में तब सामने आई जब पाकिस्तान ने कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए भारत द्वारा उठाए जा रहे कदमों का यह कहकर विरोध किया कि यह जम्मू-कश्मीर की जनसंख्या का स्वरूप बदलने की साजिश है जबकि कश्मीरी पंडित जम्मू-कश्मीर के मूल निवासी हैं जिनको पाक प्रायोजित आतंकवाद के कारण कश्मीर घाटी छोड़नी पड़ी थी और अनुच्छेद 370 भी उनके पुनर्वास में बाधक नहीं है। साफ है कि जहां भारत पीओके तथा गिलगित-बालतिस्तान में पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे अमानवीय कृत्यों पर चुप रहता है वहीं पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में दखलंदाजी करने का कोई मौका नहीं चूकता है। जहां पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में सक्रिय भारत विरोधी तत्वों को आर्थिक, कूटनीतिक और नैतिक सहायता की घोषणा करता रहता है, वहीं भारत की ओर से पीओके तथा गिलगित-बालतिस्तान में लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए लड़ रहे संगठनों को किसी प्रकार का प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है।

दरअसल वाजपेयी और मनमोहन सरकारें पीओके तथा गिलगित-बालतिस्तान में पनप रही पाक विरोधी भावनाओं के प्रति असंवेदनशील रहीं। इस नीति के पीछे पाकिस्तान की असुरक्षा ग्रंथि को और अधिक सक्रिय न करने का विचार रहा है, परंतु इस नीति ने पाकिस्तान को कश्मीर पर और अधिक आक्रामक होने का अवसर दिया है। मोदी सरकार के पास पिछली सरकारों की भूल सुधारने का अवसर है। ऐसे समय में जब चीन और पाकिस्तान भारत की सामरिक घेराबंदी करने के लिए चीन-पाक आर्थिक गलियारे को गिलगित-बालतिस्तान से ले जाना चाहते हैं, गिलगित-बालतिस्तान कार्ड और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। चीन-पाक आर्थिक गलियारे का सामरिक प्रभाव समूचे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सामरिक प्रभुत्व के लिए भी एक बड़ी चुनौती होगा। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी को चाहिए कि वह चीनी विस्तारवाद से सशंकित अमेरिका को विश्वास में लेकर मजबूत कदम आगे बढ़ाएं। भारत की संसद को भी चाहिए वह चीन और पाकिस्तान द्वारा गिलगित-बालतिस्तान में आर्थिक गलियारा बनाने के नाम पर किए जा रहे अतिक्रमण का संज्ञान ले। साथ ही यह भी आवश्यक है कि पीओके तथा गिलगित-बालतिस्तान में पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार हनन के मुद्दे को भारतीय संसदीय चर्चा में स्थान दिया जाए।

[लेखक दिव्य कुमार सोती, सामरिक मामलों के जानकार हैं]

China-Pakistan Economic Corridor: Challenges for India and US (South Asia Monitor: May 5, 2015)

An exploration of strategic link between CPEC and Chinese expansionist moves in South China Sea, the need for Indian national security establishment to publicly articulate an effective deterrent stance on CPEC as well as what CPEC means in backdrop of US-India Joint Strategic Vision for the Asia-Pacific and India Ocean Region. Read More

Indian makes a smart move in Central Asia (South Asia Monitor: Apr 23, 2015)

Good ‪#‎economic‬ relations with ‪#‎Turkmenistan‬ allows India to tap into Central Asia’s rich natural resources where it can also act as a major balancing factor between competing powers like ‪#‎Russia‬, ‪#‎China‬ and ‪#‎US‬.  Iran is the only secure and stable gateway for India to trade with Central Asia, and Turkmenistan has the potential to form the next link in the strategic chain. Read More