Jan 14, 2016, Dainik Jagran
पठानकेट एयरबेस में आतंकी हमले के लिए पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने इस बार आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का इस्तेमाल किया था। भारत के दबाव के बाद इस आतंकी संगठन के सरगना मसूद अजहर और उसके कुछ साथियों को हिरासत में लेने की खबर है, लेकिन इतने मात्र से किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचा जाना चाहिए। जैश-ए-मोहम्मद 2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले का भी जिम्मेदार था। यह 2001 के बाद अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना से लड़ रहे आतंकी गुटों की मदद करने में व्यस्त रहा। चूंकि इसका एक गुट तालिबान और अलकायदा के विरुद्ध अभियान में अमेरिका का साथ देने की परवेज मुशर्रफ की नीति के खिलाफ था इसलिए वह संगठन से अलग हो गया। इस गुट के कुछ नेताओं को मुशर्रफ की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया था, लेकिन बाद में वे रिहा हो गए। इस दौरान संगठन का मुखिया मसूद अजहर पाक सेना के प्रति वफादार बना रहा। भारतीय संसद पर हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान ने जैश-ए-मोहम्मद को प्रतिबंधित अवश्य किया, लेकिन यह सिर्फ अंतरराष्ट्रीय जगत को भ्रमित करने के लिए की गई कागजी कार्रवाई थी। इस संगठन की गतिविधियों पर आई अमेरिकी सरकार की रिपोर्ट के अनुसार प्रतिबंध के बावजूद वर्ष 2001 से 2013 तक जैश-ए-मोहम्मद खुलेआम जेहादी गतिविधियां चलाता रहा। इस संगठन का पांच एकड़ में फैला मुख्यालय पाकिस्तान के बहावलपुर में चल रहा है, जहां से वह जर्ब-ए-मोमिन नाम का एक अखबार भी निकालता है जिसका पाकिस्तान में एक अच्छा खासा पाठक वर्ग है। फरवरी 2014 में मौलाना मसूद अजहर ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद में एक बड़ी रैली को संबोधित किया था जिसमें भारतीय संसद पर हमले की साजिश रचने वाले अफजल गुरु की किताब का विमोचन किया गया था। पाकिस्तान की सरकार ने स्वयं इस रैली की सुरक्षा का प्रबंध किया था।
पठानकेट एयरबेस में आतंकी हमले के लिए पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने इस बार आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का इस्तेमाल किया था। भारत के दबाव के बाद इस आतंकी संगठन के सरगना मसूद अजहर और उसके कुछ साथियों को हिरासत में लेने की खबर है, लेकिन इतने मात्र से किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचा जाना चाहिए। जैश-ए-मोहम्मद 2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले का भी जिम्मेदार था। यह 2001 के बाद अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना से लड़ रहे आतंकी गुटों की मदद करने में व्यस्त रहा। चूंकि इसका एक गुट तालिबान और अलकायदा के विरुद्ध अभियान में अमेरिका का साथ देने की परवेज मुशर्रफ की नीति के खिलाफ था इसलिए वह संगठन से अलग हो गया। इस गुट के कुछ नेताओं को मुशर्रफ की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया था, लेकिन बाद में वे रिहा हो गए। इस दौरान संगठन का मुखिया मसूद अजहर पाक सेना के प्रति वफादार बना रहा। भारतीय संसद पर हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान ने जैश-ए-मोहम्मद को प्रतिबंधित अवश्य किया, लेकिन यह सिर्फ अंतरराष्ट्रीय जगत को भ्रमित करने के लिए की गई कागजी कार्रवाई थी। इस संगठन की गतिविधियों पर आई अमेरिकी सरकार की रिपोर्ट के अनुसार प्रतिबंध के बावजूद वर्ष 2001 से 2013 तक जैश-ए-मोहम्मद खुलेआम जेहादी गतिविधियां चलाता रहा। इस संगठन का पांच एकड़ में फैला मुख्यालय पाकिस्तान के बहावलपुर में चल रहा है, जहां से वह जर्ब-ए-मोमिन नाम का एक अखबार भी निकालता है जिसका पाकिस्तान में एक अच्छा खासा पाठक वर्ग है। फरवरी 2014 में मौलाना मसूद अजहर ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद में एक बड़ी रैली को संबोधित किया था जिसमें भारतीय संसद पर हमले की साजिश रचने वाले अफजल गुरु की किताब का विमोचन किया गया था। पाकिस्तान की सरकार ने स्वयं इस रैली की सुरक्षा का प्रबंध किया था।
पठानकोट हमले के बाद पाकिस्तान ने आतंकवाद के विरुद्ध एक बार फिर निर्णायक कार्रवाई का भरोसा दिलाया है, परंतु प्रश्न यह है कि हम निर्णायक कार्रवाई किसको मानेंगे? क्या आतंकी संगठनों पर सरकारी फाइलों में प्रतिबंध लगाना, कुछ आतंकियों को कुछ समय के लिए नजरबंद या गिरफ्तार करना और उन पर एक लचर मुकदमा दायर करने की रस्म अदायगी निर्णायक कार्रवाई मानी जा सकती है। पाकिस्तान द्वारा इस प्रकार की कार्रवाई संसद और 26/11 के मुंबई हमले के बाद भी की गई थी। क्या उस सबसे लश्कर और जैश जैसे आतंकी गुटों की भारत पर आतंकी हमले करने की क्षमता में कोई कमी आई?
कड़वी सच्चाई यह है कि 1993 के मुंबई बम धमाकों से लेकर 26/11 के हमलों तक भारत पर हुए आतंकी हमलों के गुनहगारों में से किसी एक को भी पाकिस्तान ने न तो कोई सजा दी है और न ही भारत के हवाले ही किया है। पठानकोट हमले के आरोपी आतंकियों पर कागजी कार्रवाई करने भर से भारत पर आतंकी हमले का खतरा कम नहीं होगा। यह खतरा तब तक बना रहेगा, जब तक पाकिस्तान में आतंकी ढांचा सुरक्षित है। पठानकोट एयरबेस में घुसे आतंकियों के विरुद्ध चले लंबे ऑपरेशन की काफी निंदा की जा रही है, लेकिन अगर इसकी तुलना पिछले कुछ वर्षों में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के सैनिक ठिकानों पर हुए हमलों से करें तो पठानकोट में एनएसए अजित डोभाल के दिशा-निर्देशन में चलाया गया ऑपरेशन काफी हद तक सफल रहा। उदाहरण के लिए वर्ष 2011 में पहले से खुफिया अलर्ट के बावजूद पाक फौज के खिलाफ लड़ रहे संगठन टीटीपी के आतंकी पाक नौसेना के अड्डे में घुसकर अमेरिका से खरीदे गए बेहद महंगे विमान नष्ट करने में सफल रहे थे। काबुल में नाटो मुख्यालय पर हुए आतंकी हमले के दौरान अमेरिकी राजदूत को कई घंटों तक बंकर में रह कर जान बचाना पड़ी थी। पठानकोट में ऐसी स्थिति नहीं बनी, वरना देश का बहुत अपमान होता। बावजूद इसके आतंकी इस सामरिक एयरबेस में घुस पाए, यह चिंता का विषय है।
पिछले कुछ समय से सीमा पार से होने वाले आतंकी हमलों का दबाव जम्मू और पंजाब की ओर बढ़ रहा है। गत वर्ष 27 जुलाई को पंजाब के गुरदासपुर जिले के दीनानगर थाने पर पाकिस्तान के नारोवाल सेक्टर से घुसे आतंकियों ने हमला किया था। आइएसआइ की मदद से पंजाब के गुरदासपुर, फिरोजपुर, अमृतसर और राजस्थान के रायसिंहगढ़ एवं श्रीगंगानगर सेक्टर में चल रही नशीले पदार्थों और हथियारों की तस्करी के मामले प्रकाश में आते रहे हैं। घुसपैठ करने वाले आतंकी तस्करी के इसी नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं। सीमा पर मौजूद प्राकृतिक संरचनाओं और नदी-नालों के कारण हर जगह बाड़ लगाना संभव नहीं है। ऐसे में यह आवश्यक है कि सीमा की निगरानी करने वाली एजेंसियों को छोटे उन्नत मानवरहित टोही विमानों से लैस किया जाए, ताकि सीमा पर सतत निगरानी रखी जा सके।
दरअसल आतंक प्रतिरोधक ढांचे में मौजूद कुछ मूलभूत कमियों के कारण हम आतंक के समक्ष एक असहाय राष्ट्र बनकर रह गए हैं। आम दिनों में हम इस तरह का आचरण करते हैं जैसे हमारे देश को कोई आतंकी खतरा ही नहीं है। पठानकोट एयरबेस के चारों ओर प्रतिबंधित क्षेत्र में कई दुकानें चल रही थीं और कई खोमचे वाले व्यवसाय कर रहे थे, जबकि यह पूर्ण रूप से गैरकानूनी है। आम नागरिकों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली जगहों को आतंकी आसान निशाना समझते हैं, परंतु प्रशासनिक लापरवाहियों के कारण सैनिक और अर्धसैनिक ठिकाने भी आतंकियों के लिए आसान लक्ष्य बन चुके हैं। यही कारण है कि आतंकी खुफिया अलर्ट के बावजूद पठानकोट एयरबेस में घुस पाए।
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